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भटकती आत्मा भाग - 4

प्रातः किरण यावत जगत को जन जागरण का नूतन संदेश देने हेतु प्राच्याकाश से फूट पड़ी l लालिमाच्छन्त वनस्थली का वह भूभाग विहंग-गान की स्वर्गीय मादकता में विभोर हो उठा - डूब गया | वायु अपने कनक कलेवर में गान की मंत्रमुग्ध शक्ति को भरकर चतुर्दिक बिखेरने लगी l जंगली पुष्प रंग बिरंगी घुंघट से इधर उधर झांकने लगे थे l पर्वतीय वृक्ष आकाश को छूने के लिए होड़ लगाने लगे,और उनकी शाखाएं थिरकने लगीं l पर्वत के उन्नत शिखर वसुधा के आंचल को चीर कर झांकने लगे थे l लगता था वसुधा अपनी लोक लाज को तिलांजलि दे पूर्णरूपेण अपने को उजागर कर रही थी l
कुछ ग्रामीण कंधों पर हल तथा हाथों में बैल की रश्मि थामे क्षेत्र की ओर अग्रसर होने लगे l कुछ ग्रामीण जल-पात्र हाथों में ले शौच के लिए उपयुक्त स्थान की खोज में चले जा रहे थे l कुछ ग्रामीण अल्हड़ बालाएं अपने सिर और हाथों में गगरी लिए पानी लाने हेतु झुंड बांधकर झील पर चली जा रही थीं l उनके लोकगीत की गुँजार वातावरण के तार तार को झंकृत सी कर रही थी l मनकू इस सबसे बेखबर झील के पास ही उभरे हुए एक शिला पर चुपचाप बैठा था l वह तल्लीनता से झील के शान्त निर्मल जल को निहार रहा था, तथा उसकी कल्पना कली विहंस रही थी l 
गांव भर में अपनी चंचलता तथा उछृंखलता के लिए वह प्रसिद्ध था l बड़े बूढ़े उसको समझा कर थक गए थे,परन्तु उसकी आदत न बदली l कभी किसी बुजुर्ग को चिढ़ा देता,और कभी किसी ग्रामीण युवक से बात-बात पर झगड़ बैठता | लेकिन ग्रामीण बालाओं की ओर दृष्टि उठाकर देखता भी नहीं था l अगर किसी से खुलकर बात करता था तो वह थी जानकी l हाँ सिर्फ जानकी से ही बात करता था वह l इसलिए गाँव की बालाएं जानकी को सदा चिढ़ाती रहतीं l
   जानकी भी मनकू को अपना भावी पति मान चुकी थी,परन्तु इस बात से वह अनभिज्ञ थी कि मनकू उसको अपनी बहन जैसा स्नेह और मान देता है l अपनी बहन नहीं होने के कारण जब कभी मन में बहन की याद और उसके स्नेह की प्यास जगती,तब जानकी को उसका दर्जा देकर अपने मन को संतुष्ट कर जाता था l घर की, दैनिक जीवन की सारी घटनाएं जानकी को चुस्की ले लेकर सुनाया करता था l परन्तु रात में घटी घटना को वह जानकी से भी नहीं कहना चाहता था l फिर अपने मन में उठती हुई मीठी वेदना किस पर जाहिर करे,वह समझ नहीं पा रहा था l उसके मन को कोई अज्ञात आकर्षण खींच रहा था l इसका कारण वह अंग्रेज युवती थी,परन्तु अब इसको वह अपनी मूर्खता समझ रहा था l वह उसकी भाषा भी नहीं जानता है,किसी प्रकार गाँव की पाठशाला से पांचवी तक पढ़ा था l कुछ टूटी-फूटी अंग्रेजी जान गया था,परंतु यही तो पर्याप्त नहीं था l उस अंग्रेज बाला से अच्छी तरह बातचीत भी नहीं कर सकता था l उसकी संस्कृति भी दूसरी थी,जो उसे पसंद न था l वह जानता था कि अंग्रेज भारत में आकर देशवासियों को गुलाम बना कर रखे हैं l आये दिन युवतियों की अस्मत लूटी जाती है,किसी भारतीय को कोड़े से पीटा जाता है,किसी को जबरदस्ती अपना घरेलू सेवक बनाया जाता है l अंग्रेज युवतियां भी तो उन्हीं के जैसी होती हैं l वह शराब और ऐशो-आराम पसंद करती हैं | कर्कश स्वभाव की स्वामिनी होती हैं l
   लेकिन रात वाली लड़की उन से भिन्न स्वभाव की प्रतीत होती थी l मधुर भाषिनी तथा सरल स्वभाव की प्रतीत होती थी l वह प्रेम भरी आंखों से उसे देखे जा रही थी l मनकू खिंचता चला जा रहा था l अब मनकू इसको अपनी मूर्खता  समझ रहा था l कहाँ तो वह अंग्रेज बाला  और कहां गाँव का जाहिल गंवार यह मनकू l क्या दोनों प्रेम बंधन में बंध सकते हैं ? नहीं - नहीं, कदापि नहीं | फिर भी मन क्यों बेलगाम घोड़े जैसा भागा जा रहा है उसके पीछे |
   "अरे तुम क्या कर रहे हो यहाँ बैठ कर"?
एक नारी स्वर मनकू के कर्ण-रन्ध्रों में  प्रवेश कर गई,कल्पना पुष्प  मुकुलित होने के पहले पूर्व ही टूट कर बिखर गई l मनकू की आश्चर्यचकित दृष्टिउस ग्रामीण बाला के मुख मंडल पर स्थिर हो गई,जो निश्चित ही जानकी थी l 
        "आज सवेरे मैं तुम्हारे घर गई थी,परन्तु तुमको न पाई तब यहाँ पानी लेने आ रही हूँ"|  जानकी ने कहा |
  मनकू का जवाब न मिला | जानकी भाव विह्वल होकर उसके निकट बैठ गई |
   " क्यों मेरे मिट्टी के माधव,ऐसे ही बैठे रहोगे क्या ? कुछ बोलोगे नहीं ? क्या हो गया है तुमको ?
जवाब नदारद,मनकू सोच रहा था क्या बोले और क्या नहीं | जानकी मनकू के समान ही अपनी भाव भंगिमा बनाकर, उसी के जैसा दोनों पैर शिला पर लटका कर,तथा कोहनी में सिर रखकर बैठ गई | मौन, निश्चल, स्थिर, वह मनकू के जैसा ही मुंह भी बनाने लगी l मनकू ने जब जानकी की ओर देखा तो उसकी हंसी निर्झरिणी सी फूट पड़ी, फिर भी जानकी रूठने का अभिनय करती हुई मौन ही रही | मनकू को झूठ का सहारा लेना पड़ा | उसने अपनी बातों को हवा में उछाला -  
    "सुनो जानकी मेरी एक भेड़ कल शाम को खो गयी l बाबा ने छोटकू को बहुत डांटा l मैं उनको समझा कर और अपने भाई को चुप करा कर जंगल में भेड़ खोजने गया l भेड़ तो नहीं खोज पाया, परन्तु एक दृश्य देखकर स्तंभित रह गया l वही सोच रहा था अभी"|
    जानकी बातों में आनंद लेती हुई बोली -   " क्या देखा था तुमने"?
   " मैंने देखा कि एक सियार बाघ की पीठ पर बैठकर इधर-उधर घूम रहा है, उसी समय एक अंग्रेज लड़की कहीं से आ निकली | उसने कहा -   
     " बाघ तुम तो सचमुच दयालु प्रतीत होते हो l भूखे भी होगी ही,क्योंकि सबको तो तुम अपनी पीठ पर बैठा कर सैर कराते हो तो खाओगे किसको ? चलो मैं आ गई हूँ,मुझे खाकर अपनी भूख  मिटाओ"|
  बाघ यह सुनकर दौड़ पड़ा लड़की को खाने के लिए,वह बेहोश होकर गिर पड़ी, तथा सियार महोदय इस भाग दौड़ में नीचे गिर पड़े | मैं भी अपनी जान लेकर भाग चला बस्ती की ओर"|
   "अच्छा ? तुम तो अच्छी कहानी सुना लेते हो"| 
  कहती हुई जानकी भी मुस्कुराने लगी l कुछ देर के बाद गंभीर होती हुई जानकी ने कहा -   " तुम्हारे बाबा ने मुझसे कहा था अगर रास्ते में मनकू मिले तो उससे कहना जल्दी घर आ कर कुछ ऊन लेकर शहर में बेच आये"|
    "हाँ मुझे शहर भी जाना है -  यह तो भूल ही गया था"|
     "पहले कभी तुम अपने उत्तरदायित्व को नहीं भूलते थे,आज यह कैसे हुआ ? अगर इस भूलने को अपनी आदत बना लोगे तो हो सकता है मुझे भी भूल जाओ"|
   मनकू   -   "नहीं जानकी ऐसा नहीं हो सकता | आज मेरा मन ठीक नहीं लगता... ...."
      "अरे,क्या हुआ तुमको"?
  कहती हुई जानकी मनकू की ओर घूम गई | अपने हाथों से उसके ललाट को सहलाने लगी |
     नहीं जानकी अब मन ठीक हो गया है, चलो घर चलते हैं"|
     "नहीं ऐसे नहीं, तुमको क्या हुआ है मुझसे साफ-साफ कहो; तभी जाने दूंगी"|
     मनकू   -   "अरे जानकी क्यों मेरा सिर खा रही हो,मुझे कुछ नहीं हुआ है | अगर कोई विशेष बात होती तो कहता नहीं" l
     " चलो मान गई, अब तुम यह बताओ कि इस बार शारीरिक प्रदर्शन नहीं होगा गाँव में क्या"?
     मनकू   -   "भला होगा क्यों नहीं | सरदार (गाँव के मुखिया) ने कल ही तो कहा था कि सब नवयुवक अपनी अपनी तैयारियां कर ले,सरहुल पर्व के अवसर पर शारीरिक तथा अन्य प्रदर्शन होगा"|
    " तब तुम क्यों नहीं तैयारियां करते हो"?
   " मुझे अब इन सब बातों में मन नहीं लगता"|
    " नहीं तुमको इस बार अवश्य विजयी होना है, समझे ! नहीं तो मैं तुमसे कुट्टी कर लूंगी"|
    मनकू    -     "अगर तुम कहती हो तो जरूर शामिल होऊंगा प्रतियोगिता में l चलो अब तो खुश हो"?
       " नहीं ऐसे नहीं, कल से व्यायाम, कसरत शुरू करो"|
      मनकू   -   "अच्छा बाबा ठीक है - ठीक है, अब तो घर चलो"|
       " हां मैं भी अब पानी लेकर आ रही हूँ,तुम आगे बढ़ो"|
           मनकू के पैर घर की ओर बढ़े जा रहे थे। उसने आज बहुत महत्वपूर्ण बात जानकी से गुप्त रख लिया था,जिसका उसे मलाल था। परन्तु मनकू समझ रहा था कि इस बात को बता देने पर गाँव में कोलाहल मच सकता है भविष्य में। व्यर्थ की परेशानी नहीं लेना चाहता था वह, इसलिए रात वाली घटना छिपाना ही उचित था।

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3 Comments

RISHITA

02-Sep-2023 09:47 AM

Awesome

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Anjali korde

29-Aug-2023 11:07 AM

Very nice

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